Saturday, November 18, 2017

हवाएँ कुछ ऐसे बदलीं ...


असली चहरे पहले भी कहाँ दिखते थे
कि इक और मुखौटा पहना दिया
दिलों में प्रदूशन की क्या कमी थी
की जो हवाओं में भी फैला दिया
रोज़ घुट के मरने के ज़रिए तो काफ़ी थे
क्यों साँसों को ही ज़हरीला बना दिया
दौड़ धूप से तो वैसे ही छुपते फिरते थे
क्यों घर की चारदीवारी में क़ैद करा दिया ।

- संजय धवन
November 2017

😞