Monday, September 4, 2017

कल


कल

पीछे मुड़ के देखो तो एक कहानी नज़र आती है ज़िन्दगी
बीता दर्द इक बेदर्द मुस्कान बन हाथ हिलाता है
वो हवा ही क्यों भाती है जो दूर गुज़र जाती है
जो है नहीं उसके होने का अहसास क्यों विश्वस्त है

आज के काँटे क्यूँ कटार बन काटते हैं
क्यूँ चुभते हैं वो कंकड़ जो अभी पाँव तले हैं
घड़ी की सुइयों के नीचे ही अंधेरा क्यूँ है
ऐसा अब ही क्यों हाथ जकड़े साथ चलता है

सड़क जो आगे है पहाड़ बन खिलखिलाती है
आने वाले मोड़ की ओझल झलक क्यूँ मन घबराती है
सुनहरे सपने सागर के उस पार ही क्यों पलते हैं
कल की आस में क्यूँ रुकी है दिल की धड़कनें 

आज की टिक टिक पे क्यूँ नहीं नाचती है ज़िन्दगी 
जो फिसल गई हाथ से वही क्यूँ सुहाती है ज़िन्दगी ।

- संजय धवन

4 comments:

Unknown said...

एक कल जो बीत गया,
एक कल जो नहीं है आया,
कल की क्यों इतनी परवाह,
जब सिर्फ़ आज है वास्तविकता ....

शैली सिंह

Dyslexicon said...

Thank you 😊

Unknown said...

Wow 😮

mks232 said...

Fabulous 👌