एक प्रश्न जो सभी बुद्धिजीवी सोच को निशब्द करता है - वह है:
मैं क्या हूँ और मैं क्यूं हूँ।
कईं रातें बेचैन करवटें बदलती रहीं, कईं शामें चाय की सुर्खियाँ भरती रहीं इसी प्रश्न के कारण । उत्तर जैसे रेगिस्तान का पानी, जितने कदम बढाये उसकी ओर उतना ही दूर पाया उसे अपने होटों से । चारों ओर बचा केवल एक निरार्थक सा एहसास और जीवन चल रहा है एक टीले से दूसरे टीले पर एक बूँद की तलाश में ...
5 comments:
You amaze me with your skills each time...!!!
How true is each word...!
Thanks a lot for your comments !
परन्तु एक प्रश्न और उमड़ता है - आप कौन हैं.
Ek ehsaas....after reading your beautiful lines, I simply closed my eyes and stopped doing anything, only tried to feel the moment.
I realized from the last couple of months, am running endlessly and missing some thoughtful individual ehsaas....
I often feel the same....but then I wonder .....nirarthakta ko sarthakta mein badalna kya hamaare haath mein nahin
Thanks Sanjhi & Ruchira !
Post a Comment