Wednesday, February 27, 2008

एक निरर्थकता का एहसास !

Shifting Sands

एक प्रश्न जो सभी बुद्धिजीवी सोच को निशब्द करता है - वह है:
मैं क्या हूँ और मैं क्यूं हूँ।
कईं रातें बेचैन करवटें बदलती रहीं, कईं शामें चाय की सुर्खियाँ भरती रहीं इसी प्रश्न के कारण । उत्तर जैसे रेगिस्तान का पानी, जितने कदम बढाये उसकी ओर उतना ही दूर पाया उसे अपने होटों से । चारों ओर बचा केवल एक निरार्थक सा एहसास और जीवन चल रहा है एक टीले से दूसरे टीले पर एक बूँद की तलाश में ...

5 comments:

Quest said...

You amaze me with your skills each time...!!!
How true is each word...!

Dyslexicon said...

Thanks a lot for your comments !

परन्तु एक प्रश्न और उमड़ता है - आप कौन हैं.

Navneet Kaur Ahuja said...

Ek ehsaas....after reading your beautiful lines, I simply closed my eyes and stopped doing anything, only tried to feel the moment.
I realized from the last couple of months, am running endlessly and missing some thoughtful individual ehsaas....

Anonymous said...

I often feel the same....but then I wonder .....nirarthakta ko sarthakta mein badalna kya hamaare haath mein nahin

Dyslexicon said...

Thanks Sanjhi & Ruchira !