शाम का सन्नाटा
और चले बादल घर की ओर
हमने फिर आसमान से बाँटा है
मन का गहरा रहस्य घनघोर
(मनु आर्या)
तारों की टिमटिमाहट फिर गूंजेगी
चाँद की मुस्कुराहट फिर गूंजेगी
घड़ी की ताल से दिल बहलाले चंद घंटे
सूरज के क़दमों की आहट फिर गूंजेगी ।।
(संजय धवन)
The random thoughts that I think from my heart. And the feelings erupting in my mind. Isn't life a big paradox?
2 comments:
रात के अंधकार से न डर राही,
गहरी ग़मगीन सी श्यामल स्याही
भी लाती अपने दामन में ज्योति प्यारी
और खिल उठती जीवन की हर फुलवारी....
क्योंकि शीत के कठोर दिल से,
उत्तपन्न होती बसंत की बारिशें,
और धुल देती अपनी सौंधी महक से
हर दुख दर्द , पीड़ा और रंजिशें!!!!!
धन्यवाद 🙏
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