Wednesday, December 17, 2014

पेशावर 16/12/2014



कल उड़ गये कुछ पंछी जिनके पंख ही नहीं ,
गरम हवाओं को चीरते ,ऐसे आसमान में ,जिसकी छत ही नहीं ,
ममता का दाना माँ के मुँह में ही रह गया,
निर्मम शिकारी का हर तीर छल गया।

किस बहरे भगवान से फ़रियाद करे माँ ,
किस अंधे अल्लाह को दिखाए दामन वीरान,
जब बन्दे के दिल से ख़ुद ,खुदा मर गया ,
इन्सानियत का जनाज़ा फिर एक बार निकल गया ।

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