कल
बीता दर्द इक बेदर्द मुस्कान बन हाथ हिलाता है
वो हवा ही क्यों भाती है जो दूर गुज़र जाती है
जो है नहीं उसके होने का अहसास क्यों विश्वस्त है
आज के काँटे क्यूँ कटार बन काटते हैं
क्यूँ चुभते हैं वो कंकड़ जो अभी पाँव तले हैं
घड़ी की सुइयों के नीचे ही अंधेरा क्यूँ है
ऐसा अब ही क्यों हाथ जकड़े साथ चलता है
सड़क जो आगे है पहाड़ बन खिलखिलाती है
आने वाले मोड़ की ओझल झलक क्यूँ मन घबराती है
सुनहरे सपने सागर के उस पार ही क्यों पलते हैं
कल की आस में क्यूँ रुकी है दिल की धड़कनें
आज की टिक टिक पे क्यूँ नहीं नाचती है ज़िन्दगी
जो फिसल गई हाथ से वही क्यूँ सुहाती है ज़िन्दगी ।
- संजय धवन