A collaborative poem by Dr. Meenakshi Ahuja & Dr. Sanjay Dhawan:
वो भी क्या दिन थे:
मम्मी की गोद और पापा के कंधे
ना पैसे की सोच ना लाइफ के फंडे
ना कल की चिंता ना फ्यूचर के सपने
और अब
कल की है फ़िक्र और अधूरे हैं सपने
मुड़ कर देखा तो दूर हैं अपने
मंजिलों को ढूँढ़ते हम कहाँ खो गए
ना जाने क्यूँ हम इतने बड़े हो गए ।
(मिनाक्षी)
कुछ ग़म नहीं
आज भी दिन हैं मस्त और रातें हैं अपनी
नटखट बच्चे, दबंग दोस्त और सेक्सी पत्नी
कुछ पूरे हुए सपने और कुछ की उम्मीद कल पर
कभी उप्पर कभी नीचे दौड़ रही है ज़िंदगी इस पथ पर
बूड़े हुए मात पिता और ढ़लता अपना योवन है
क्षण भर हंसी दो बूँद आंसू यही तो जीवन है ।
(संजय)
वो भी क्या दिन थे:
मम्मी की गोद और पापा के कंधे
ना पैसे की सोच ना लाइफ के फंडे
ना कल की चिंता ना फ्यूचर के सपने
और अब
कल की है फ़िक्र और अधूरे हैं सपने
मुड़ कर देखा तो दूर हैं अपने
मंजिलों को ढूँढ़ते हम कहाँ खो गए
ना जाने क्यूँ हम इतने बड़े हो गए ।
(मिनाक्षी)
कुछ ग़म नहीं
आज भी दिन हैं मस्त और रातें हैं अपनी
नटखट बच्चे, दबंग दोस्त और सेक्सी पत्नी
कुछ पूरे हुए सपने और कुछ की उम्मीद कल पर
कभी उप्पर कभी नीचे दौड़ रही है ज़िंदगी इस पथ पर
बूड़े हुए मात पिता और ढ़लता अपना योवन है
क्षण भर हंसी दो बूँद आंसू यही तो जीवन है ।
(संजय)
2 comments:
this is simply so so so beautiful ....so perfectly penned by b0th of you....loved it...really...
Thank you Sonny !
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