She wrote . . .
जीवन के कई रंग
कभी मन खुला, कभी दिल तंग!
देखूँ किसे, किस से मैं बोलूँ
राज़ मन के गहरे
किस पे मैं अब खोलूँ
वे भी थे दिन - कहते थे वे अपने दिल की
दिल में लालच ढ़ाई अखर सुनने का हर दम
आज तो दिन बीतता रात गुज़र जाती
आइने में भी न आते नज़र तुम न दिखाई देते हम
जा तोसे अब न बोलूँ
दिल की आस न अब खोलूँ
रूठना अब भी है मुझे- मना ले मन मोहना
सुनना अब भी है- कह तो सही
मनना मनाना अब भी है, रूठ लो मन मोहना
कहना अब भी है, सुन तो सही!!!
कभी मन खुला, कभी दिल तंग!
देखूँ किसे, किस से मैं बोलूँ
राज़ मन के गहरे
किस पे मैं अब खोलूँ
वे भी थे दिन - कहते थे वे अपने दिल की
दिल में लालच ढ़ाई अखर सुनने का हर दम
आज तो दिन बीतता रात गुज़र जाती
आइने में भी न आते नज़र तुम न दिखाई देते हम
जा तोसे अब न बोलूँ
दिल की आस न अब खोलूँ
रूठना अब भी है मुझे- मना ले मन मोहना
सुनना अब भी है- कह तो सही
मनना मनाना अब भी है, रूठ लो मन मोहना
कहना अब भी है, सुन तो सही!!!
He wrote . . .
शब्दों की बैसाखी पे दिल को टिकाए बैठी हो।
प्यार को क्यूँ अक्षरों का मोहताज बनाए बैठी हो।
बीते कल के कोहरे को चिराग़ों से रौशन कर के।
आज की महफ़िल में अंधकार बिछाए बैठी हो।।
प्यार को क्यूँ अक्षरों का मोहताज बनाए बैठी हो।
बीते कल के कोहरे को चिराग़ों से रौशन कर के।
आज की महफ़िल में अंधकार बिछाए बैठी हो।।
By Nidhi Dhawan & Sanjay Dhawan